Movie Review : ‘भोला’ में गायब कहानी ने उसकी आत्मा को मारा
भोला
कलाकार : अजय देवगन , तब्बू , दीपक डोबरियाल , विनीत कुमार , किरन कुमार , गजराज राव , अमला पॉल , संजय मिश्रा और अभिषेक बच्चन
निर्देशक : अजय देवगन
दो टूक : शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ ने साल के शुरू में खतरनाक एक्शन और दिल दहला देने वाले स्टंट का मसाला लोगों को क्या दिया अब हर तीसरी आने वाली फिल्म में यही सब देखने को मिल सकता है । अजय देवगन की फिल्म भोला में भी गजब का एक्शन है लेकिन उसकी कहानी गायब है ।
कहानी : भोला की कहानी अङ्ग्रेज़ी की ‘कैथी’ से है। 10 साल बाद जेल से छूटा एक कैदी अनाथालय में पल रही अपनी बेटी से मिलने के लिए निकलता है तो रास्ते में उसे पुलिस उठा लेती है। उत्तर प्रदेश में बुनी इस कहानी में सब कुछ है लेकिन फिल्म ‘कैथी’ की मूल आत्मा फिल्म ‘भोला’ से गायब है। कथा, पटकथा और संवाद के स्तर पर कमजोर पड़ी ‘भोला’ में शुरू से लेकर आखिर तक इतना वीभत्स रस है कि उसके आगे न तो इसका हास्य गुदगुदा पाता है। ‘यू मी और हम’, ‘शिवाय’ और ‘रनवे 34’ के बाद अजय देवगन के निर्देशन में बनी चौथी फिल्म ‘भोला’ ये भी साबित करती है कि अभिनेता अजय देवगन भले कमाल के हों, लेकिन निर्देशन की जिद उन्हें अब छोड़ देनी चाहिए।
अभिनय : फिल्म ‘विजयपथ’ से तब्बू के साथ बनी अजय देवगन की जोड़ी पिछली दो फिल्मों में सफल रही है। फिल्म ‘भोला’ इस गुमान को भी तोड़ती है। अभिनय के मामले में अजय देवगन और तब्बू के अलावा संजय मिश्रा ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। गजराज राव और दीपक डोबरियाल ने पूरी फिल्म में सिर्फ ओवर एक्टिंग की है। विनीत कुमार का निठारी का किरदार जरूर आतंक का पर्याय बन सकता था लेकिन उसे ठीक से विकसित ही नहीं किया गया। वह पुलिसवालों का ‘भोजन’ करता है लेकिन नाम निठारी होने के बावजूद इस शब्द की दहशत फिल्म में स्थापित नहीं होती। खून खराबा पसंद करने वालों के लिए फिल्म के क्लाइमेक्स में भोला का तांडव रखा गया है जिसमें वह त्रिशूल से दुश्मनों का सफाया करता दिखता है। लेकिन, मामला यहां भी जमता नहीं है।
निर्देशन : फिल्म ‘भोला’ की अधिकतर शूटिंग रात की है और इन दृश्यों का असर पैदा करने के लिए सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज ने जो मेहनत की है, वह फिल्म के थ्रीडी कनवर्जन के बाद अपना प्रभाव खो देती है। आर पी यादव ने फिल्म के एक्शन दृश्य रचने में खासी मेहनत की है और ये फिल्म को आगे बढ़ान में थोड़ी बहुत मदद भी करते हैं। लेकिन, फिल्म में एक्शन के अलावा कुछ और है भी नहीं। संगीत विभाग में भी फिल्म फेल है। फिल्म का कोई भी गाना गुनगुनाने भर को भी याद नहीं रहता। इंटरवल से ठीक पहले बी प्राक की आवाज में बजे जिस गाने से फिल्म देख रहे दर्शकों की भावनाओं में उफान लाने की कोशिश की गई, वह भी विफल ही रहती है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म का सबसे बड़ा कमजोर पहलू है और ये फिल्म देखने के अनुभव को बहुत ज्यादा खराब करता है। दो घंटे 24 मिनट लंबी ये फिल्म कम से कम 20 मिनट छोटी हो सकती है और तब शायद इसका असर इससे तो बेहतर ही होता।
फिल्म क्यों देखे : अजय देवगन के एक्शन के लिए
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